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दाग़ / अरविन्द भारती
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सर ऊपर उठाकर
छाती फुलाकर
कहते फिरते हो
हमारी
सभ्यता और संस्कृति
विश्व में
सर्वश्रेष्ठ है
सुनो
तुम्हारी पीठ पर
एक दाग है
बहुत बड़ा
तुम
भले ही
बेशर्मों की तरह
कहते फिरते हो
कि कुछ दाग
अच्छे होते है
पर
तुम्हारे इस कृत्य से
मानवता शर्मसार है।