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दादी जी के उपदेशों का / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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दादीजी के उपदेशों की
, हर दिन खिचड़ी पकती है।
समझाइश की, सदाचार की,
दाल पकाती हंडी में।
चांवल पकते जो मिलते हैं,
दया प्रेम की मंडी में।
यह करना है वह न करना,
बस निर्देशित करती है।
अदरक वाली चाय बनाओ,
कहती इससे लाभ बहुत।
हल्दी वाला दूध बताती,
होता असर बड़ा अद्भुत।
हमें पौष्टिक भोजन देकर,
बहुत-बहुत खुश रहती है।
दादी के उपदेशों पर तो,
कभी-कभी गुस्सा आता।
बनकर बैल बंधू खूंटे से,
मुझको ज़रा नहीं भाता।
पर उनकी ममता ऐसी है,
बात मानना पड़ती है।
बड़े बुजुर्गों की बातों में,
सार हमेशा रहता है।
भले झिड़कियाँ डांट डपट हो,
प्यार हमेशा रहता है।
लगता है सच प्यारी दादी,
बात पते की कहती है।