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दाल मूँग की दलने दो / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
दुश्मन की छाती पर हमको,
दाल मूँग की दलने दो!
कोई हमें न हाँक लगाये,
किसी वजह से हमें बुलाये,
धरती की है आन बचानी,
झंडे की है शान बचानी।
अपनी मंजिल पा जाने तक,
नये जोश में चलने दो।
हमको आगे बढ़ना है,
हर चोटी पर चढ़ना है।
खाई-खंदक नद नाले,
चाहे पथ में जो आ ले।
तप्त रेट में पाँव जले तो,
बिना झिझक के जलने दो।
बाधाओं से डरना क्या?
बिन मारे ही मरना क्या?
हर दुश्मन को मारेंगे,
कभी नहीं हम हारेंगे।
टलते हैं जो काम ज़रूरी
उन्हें आज तुम टलने दो!