भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दास्ताने-ज़िन्दगी / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कह रहा हूँ दास्ताने-ज़िन्दगी.
ग़म-ख़ुशी हैं दरमियाने-ज़िन्दगी.

मौत की क्यों फ़िक्र वो तो आएगी,
आओ गायें हम तराने-ज़िन्दगी,

खट्टे-मीठे कितने अनुभव रोज़ ही,
मिलते हैं हमको बहाने-ज़िन्दगी.

है जहाँ पर प्यार सँग सब्रो-सुकूं,
है वहाँ पर आशियाने-ज़िन्दगी.

ख़ुदकुशी को जा रहा था कोई जब,
आ गया कोई बचाने ज़िन्दगी.

बाँटिये मुस्कान औरों को सदा,
फिर लगेगी मुस्कुराने ज़िन्दगी.