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दिगदिग थैया लड़ेलड़े / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
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दिगदिग थैया लड़ेलड़े,
काज करक अछि बड़े-बड़े।
लड़िते चललहुँ जेँ सय डेग,
बढ़िते चल जायत ई वेग।
मा, मामा, बाबा, सब बोल,
सिखलहुँ, करइत छी अनघोल।
दौड़ि चलब नहि, लागत ठेस,
घूमू सबतरि देश-विदेश।
पहुँचब घर-घर गबइत गीत,
सब बनता अपनेसँ मीत।
चलू सम्हरि, ठोकू कसिताल,
काज पड़ल अछि टालक टाल।
मिथिला माता रखती तोख,
‘बटुक’ मोटाउ अहाँ भरिपोख।
‘सूधा-धार सबतरि बरिसाउ,
काका लग दौड़ल चल आउ।
(बटुक, शतांक 1962)