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दिनकर की किरनों से मारी / केदारनाथ अग्रवाल
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दिनकर की किरनों से मारी
एक नदी पत्थर के ऊपर तड़प रही है
जैसे घन से छूटी बिजली
नीलम नभ में तड़प रही है
रचनाकाल: १६-०७-१९६१