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दिन जाते देर नहीं लगती / रामगोपाल 'रुद्र'
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दिन जाते देर नहीं लगती, यह तो सच है;
फिर मुझे रात ही क्यों पहाड़-सी लगती है?
बस एक कुतूहल है कि शिखर चढ़कर देखूँ
क्या है वह पार-पुकार, मुझे जो ठगती है!