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दिन मुरादों के ऐश की रातें / अख़्तर अंसारी

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दिन मुरादों के ऐश की रातें
हाए क्या हो गईं वो बरसातें

रात को बाग़ में मुलाक़ातें
याद हैं जैसे ख़्वाब की बातें

हसरतें सर्द आहें गर्म आँसू
लाई है बर्शगाल सौग़ातें

ख़्वार हैं यूँ मेरे शबाब के दिन
जैसे जाड़ों की चाँदनी रातें

दिल ये कहता है कुंज-ए-राहत हूँ
देखना ग़म-नसीब की बातें

जिन के दम से शबाब था ज़िंदा
है 'अख़्तर' वो इश्क़ की घातें