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दिन में घास चमक रही थी / नरेन्द्र जैन
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दिन में
घास चमक रही थी
अब रात
तारे चमकते हैं
तारों के पार
वह सवेरा
जो अभी अन्धेरा है
अन्धेरे के पार
वह सूरज
जो अभी दौड़ता
ललमुँहा बच्चा है
बच्चे के पार
वह
इच्छा
जो
बुलबुल के पँखों में
उड़ान भर
रही है