दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए
इस तरह मिलिए कि जुज़्व-ए-ज़िंदगी बन जाइए
इक पतिंगे ने ये अपने रक़्स-ए-आख़िर में कहा
रौशनी के साथ रहिए रौशनी बन जाइए
जिस तरह दरिया बुझा सकते नहीं सहरा की प्यास
अपने अदंर एक ऐसी तिश्नगी बन जाइए
देवता बनने की हसरत में मुअल्लक़ हो गए
अब ज़रा नीचे उतरिए आदमी बन जाइए
जिस तरह ख़ाली अगूँठी को नगीना चाहिए
आलम-ए-इम्काँ में एक ऐसी कमी बन जाइए