दिवाली मनाया करो / ईशान पथिक
तुम बहाने न इतने बनाया करो
हम जलें तुम दिवाली मनाया करो
दूर से तुम न यूँ मुस्कुराया करो
मुस्कुराकर न नज़रें चुराया करो
बाँध पलकों में सपनों के सौ सौ पतंग
मन तो उड़ता रहा नित हवाओं के संग
सांस में घुल गयी कोई मादक हंसी
और कानों में पायल की छुम छुम छनन
घुँगरूओं को न यूँ खनखनाया करो
दूर छज्जे से ना खिलखिलाया करो
तुम बहाने न इतने बनाया करो
हम जलें तुम दिवाली मनाया करो
पहले खुद हीं बुलाती इशारों से हो
पास आऊं तो कहती हो आये हो क्यों
मुझको दुत्कार कर खुद मे जाती सिमट
पात छुई-मुई सी लजाती हो क्यों
मेरी आंखो की ठहरी हुई झील में
चाँद सा रूप तुम देख जाया करो
तुम बहाने न इतने बनाया करो
हम जलें तुम दिवाली मनाया करो
आज मन में खिलीं मेरे कलियाँ हज़ार
मेरे गीतों से करलो कभी तो श्रृंगार
सावनी सी बरस लो कभी रेत पर
भाव राधा की यमुना से लेकर उधार
धूप खाई बहुत ज़िन्दगी है मेरी
गंध सौंधी सी इसमें जगाया करो
तुम बहाने न इतने बनाया करो
हम जलें तुम दिवाली मनाया करो