Last modified on 3 अक्टूबर 2009, at 16:18

दीप अभी जलने दे, भाई / हरिवंशराय बच्चन

दीप अभी जलने दे, भाई!

निद्रा की मादक मदिरा पी,
सुख स्वप्नों में बहलाकर जी,
रात्रि-गोद में जग सोया है, पलक नहीं मेरी लग पाई!
दीप अभी जलने दे, भाई!

आज पड़ा हूँ मैं बनकर शव,
जीवन में जड़ता का अनुभव,
किसी प्रतीक्षा की स्मृति से ये पागल आँखें हैं पथराई!
दीप अभी जलने दे, भाई!

दीप शिखा में झिल-मिल, झिल-मिल,
प्रतिपल धीमे-धीमे हिल-हिल,
जीवन का आभास दिलाती कुछ मेरी तेरी परछाईं!
दीप अभी जलने दे, भाई!