भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुआओं का फूल / हरकीरत हकीर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोचें सच होती होगीं
पर हीर की सोचें कभी कैदो* ने
सच नहीं होने दीं
इक खूबसूरत शायरा की मुहब्बत
वक़्त की कीलियों पर टंगी
मजबूर खड़ी है ….

इस पीर की कसक
तूने भी सुनी होगी कभी
कब्रों पर
सुर्ख गुलाब नहीं खिला करते
अपनी पागल सी चाहत
रंगीली चुन्नियों के ख़्वाब
मैंने अब चुप्पियों की ओट में
छिपा दिए हैं …
मुहब्बत की लकीरें
कैनवास पर उतरती होंगी
हथेलियों पर लकीरें
तिड़क जाती हैं …

चल तू यूँ जख्मों पर
रेशमी रुमाल न फेरा कर
रात आहें भरने लगती है
बेजान हुए सोचों के बुत
पास खड़े दरख्तों से
ख़ामोशी के शब्द तलाशते हैं
सपनों के अक्षर पत्थर हो
धीमे से समंदर में
उतर जाते हैं ….

देख आज मेरी नज़्म भी
सहमी सी खड़ी है
आ आज की रात
इसकी छाती पर कोई
दुआओं का फूल रख दे …!!

( कैदो - हीर का चाचा जिसने जहर देकर हीर को मारा था )