भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुखी जोकर / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
इस हंसाने वाले जोकर की तस्वीर तो देखो
उतार ली है किसी ने उसकी दुख भरी मुद्रा में
मालूम नहीं क्यों यह भयभीत है
अभी तक इसने अपने चेहरे का मेकअप भी नहीं बदला है
काम करते-करते गुस्से से बाहर आ गया हो शायद
या काम खत्म करते ही
कोई परेशानी याद आ गयी हो
अभी वह बिल्कुल अकेला है बैठा है एक बेंच पर
अपने ढ़ीले-ढ़ाले कपड़ों में
सिर से हैट भी अलग नहीं कर पाया है
ना ही दे सका है हाथों से सहारा ठुड्डियों को
इसी बीच किसी ने उसकी तस्वीर उतार ली
मेकअप में उसका असली चेहरा छुपा हुआ
महसूस होता है जैसे सारे जोकर उदास हों दुनिया के
ठीक उसके पीछे तम्बू दिखता है
और लगता है उसकी सारी उदासी
गिरी हुई सर्कस पर।