दुख के होते हैं कई प्रकार
किसी एक ही साँचे में ढले नहीं होते हैं वे
एक दुख यह
कि बरसों बाद अतिथि आए
दूध वाला नहीं आया, चाय नहीं बनी
एक दुख यह
कि बरसों बाद महक मिली मसालों की
मगर भूख नहीं मिली, प्यास नहीं मिली
एक दुख यह
कि बरसों बाद दर्ज़ी को दिया नाप
सिलवाने को एक अदद पतलून
और टूट गया सुई-धागे का धैर्य
एक दुख यह
कि बरसों बाद मोची ने पूछा नाप जूते का
जैसे कि ख़बर ज़िन्दगी की
एक दुख यह
कि बरसों बाद किसी सूने में बैठा कवि
सूख गई नदी को देख-देख रोता है
एक दुख यह
कि बरसों बाद बापू की याद आती है
जैसे कि हो वह कोई बचपन का स्वाद
एक दुख यह
कि बरसों बाद क्यों नहीं हैं मुक्तिबोध
उठाने को अभिव्यक्ति के खतरे ?
एक दुख यह
कि बरसों बाद दिखाई दे जाती है आज भी
महाजनी सभ्यता की अस्थियाँ तो क्यों ?
दुख के कई प्रकार होते हैं
किसी एक सी सांचे में ढले नहीं होते हैं वे
कोशिश करो कि बदले उनका मुहावरा
और ज़रा तुरत-फुरत ।