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दुख सुख / मोती बी.ए.
Kavita Kosh से
दुख जो ढील दे दी
लगाम घींचले ना रही
त सुख
आदिमी के गड़हा में ढकेलि दी
तनी समुझा द उनके
जे जवानी के बाढ़ पर बा
कहिद अपना के रोकें
ना त
पता ना लागी
पताले चलि जइहें
उनही के जवानी उनके ताना मारी
केतनो जोर लगइहें
गड़हा में से निकलि ना पइहें
जहें के तहें सरि जइहें
दुख के संघति जो कइले रहितें
त उनके ई गति ना होइत
जवानी उतराए खातिर ना
बढ़िआए खातिर ना
गढुआए खातिर ह!
जो ढेर उड़िहें त
उनके सक्तिए
उनके ले बीती।
06.11.92