दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र में
एक औरत लड़ रही है
उनके लिए
जिससे उसका
कोई संपर्क-संबंध नहीं
और जो नियति की नहीं
तानाशाही के भेंट चढ़ गये
सिर्फ इतना ही नहीं
पिछले ग्यारह वर्षों से उसे
दया,करुणा,कसक,मुआवजे,सहानभूति की नहीं
बस इंसाफ की तलाश है
पर सुनो इरोम..
इस व्यवस्था में फैले
अवरोधों,मुश्किलों,आशंकाओं,निराशाओं के घेरे में
उजाला कहीं दिखे न दिखे
पर टूटना नहीं
झुकना नहीं
हटना नहीं
हालांकि इस लोकतन्त्र में
तन्त्र और इंसाफ
तो एक लम्बा इंतजार है