दुनिया डिजिटल है / ललन चतुर्वेदी
कौड़ी, आना, पाई
सबका हिसाब रखते थे भाई
पैसे के हिसाब-किताब से नाखुश
भाइयों ने कर लिया बंटवारा
चंद रुपये के लिए
टूट गयी बरसों की दोस्ती
पैसों के खेल में मगन लोगों को देखकर
कबीर ने दुनिया को घोषित कर दिया बाजार।
कैशबैक के चक्कर में हमने
मोबाइल में लोड कर रखे हैं अनेक एप्प।
आॅफर तय करते हैं
क्या खाना है मुझे आज
क्या पहनना है कल
और पढ़ना भी क्या है
हद है, यकीन मानिए भाई साहब!
बाल्टी के लोभ में प्रोफेसर साहब ने
बदल दिया है अपना पसंदीदा अखबार
अब पेपर पढ़ने के बजाय
लोग कुपन काटकर जमा करने लगे हैं।
बगल के कमरे में आसीन श्रीमती जी से
श्रीमान कर रहे हैं ह्वाट्सएप पर संवाद
आ रहे हैं सम्बंधों के
नित नए डिजिटल संस्करण
और कितने दूं उदाहरण
और रखूं कितने उद्धहरण
इस तरह हो रहा है सभ्यताओं का चीरहरण
गाल पर दोनों हाथ रख कर
घण्टे भर से सोच रही है मुनिया
इतनी डिजिटल क्यों हो गयी दुनिया?