जीवन भर के सारे सिक्के
तालाब में कूद कर मछलियाँ बन जाते हैं
स्वर्ण के सारे मुहर मेंढक
और ज़ेवर साँप
जाल में से निकलते हैं
फूते हुए काले मटके
नल भटकता फिरता है नगर-नगर
दमयंती चांडाल के बिस्तर पर
अपनी देह के चीथड़े सीती है
जीवन भर के सारे सिक्के
तालाब में कूद कर मछलियाँ बन जाते हैं
स्वर्ण के सारे मुहर मेंढक
और ज़ेवर साँप
जाल में से निकलते हैं
फूते हुए काले मटके
नल भटकता फिरता है नगर-नगर
दमयंती चांडाल के बिस्तर पर
अपनी देह के चीथड़े सीती है