दुष्टकूट / शब्द प्रकाश / धरनीदास
वर्षा प्रथम जो मास, पिता हनुमान कहीजै। कलियुग भक्त प्रसिद्ध, कामको नाम गुनी जै॥
भूप भवो द्विज रंक, वरत चाँदस भादाँ जँह। रामचन्द्र सहिदानि, दियो हनुमान सीप कँह॥
सन्त नाम एक ठाम लिखि, आदि अन्त दुइ नहि लियो।
मध्य रहो अच्छर अमिय, धरनी जन शिरपर कियो॥22॥
कौन मास दिन कौन, कौन धोँ पौन-अच्छकर। कौन शेष को देश, मानसर कौ न ध्यान धर॥
कौन देवतन नाम, कौन वलभद्र अन्तगहु। पार्वती-सुत कौन, नन्दकुल कौन कड़य दुहु॥
अष्ट नाम त्रय अच्छरा, आदि अन्त दुइ नहि लिवो।
मध्य रहो अच्छर अमिय, धरनी के सहजै भवो॥23॥
कृष्ण सरूपी गोप, गऊ पर्वत अस्थानी। सुआ पढ़ावत तरी रंक, द्विज भौ रजधानी॥
संकर्षण को अन्त, नृपति सुत कहा कही जै। का पिनाक को कहिय, नाम संग्राम गुनी जै॥
दान देत नर कौन कर, पढ़ि गुनि अर्थ बखानिये।
जो कछु कहे मध्यच्छरा, समुझि सत्य करि मानिये॥24॥
पावस प्रथम जो मास, कहा अलि नाम विचारो। साँचनाम सोवर्न, दिवाकर नाम उचारो॥
रघुनायक की नारि, न मारै वार वखानी। अमरावति पति कौन, वान केहि माँह संधानी॥
वनिजारे की जाति गुनि, आशा भ्रम मेँ मर्मना।
जो कछु कहै मध्यच्छरा, धरनी मन वच कर्मना॥25॥