अङ्गेनाङ्गे प्रतनु तनुना गाढतप्तेन तप्तं
सास्त्रेणाश्रुद्रुतमविरतोत्कण्ठमुत्कण्ठितेन।
उष्णोच्छ्वासं समधिकतरोच्छ्वासिना दूरवर्ती
संकल्पैस्तैर्विशति विधिया वैरिणा रुद्धमार्ग:।।
दूर गया हुआ तुम्हारा वह सहचर अपने शरीर
को तुम्हारे शरीर से मिलाकर एक करना
चाहता है, किन्तु बैरी विधाता ने उसके लौटने
का मार्ग रूँध रखा है, अतएवं वह उन-उन
संकल्पों द्वारा ही तुम्हारे भीतर प्रवेश कर रहा है।
वह क्षीण है, तुम भी क्षीण हो गई हो।
वह गाढ़ी विरह-ज्वाला में तप्त है, तुम भी
विरह में जल रही हो। वह आँसुओं से भरा है,
तुम भी आँसुओं से गल रही हो। वह वेदना
से युक्त है, तुम भी निरन्तर वेदना सह रही
हो। वह लम्बी उसाँसें ले रहा है, तुम भी तीव्र
उच्छ्वास छोड़ रही हो।