Last modified on 15 अप्रैल 2020, at 15:38

देखो नाच रहा है मोर / मधुसूदन साहा

जंगल के सुने आंगन में
देखो नाच रहा है मोर।

जब-जब सावन-धन आता है,
पंख खोलकर इतराता है,
वर्षा कि रिमझिम बूँदों में
झूम-झूम कैसे गाता है,

जरा ओट से छिपकर देखो
बिना मचाये कोई शोर।

सभी पक्षियों से यह सुंदर,
हरे रंग के पंख मनोहर,
उन पर नीली-नीली आँखें,
लगती कितनी मोहक-मनहर,

कभी न खिंचों उन्हें पकड़कर
नहीं लगाओं अपना ज़ोर।

लगता यह बूँदों का सहचर,
भींग रहा वर्षा में जीभर,
किन्तु पड़े जब कभी दिखाई
नहीं छोड़ता कोई विषधर।

तुरत चोंच से उसे पकड़कर
देता है कसकर झकझोर।