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देखो फिर सावन आया है / कमलेश द्विवेदी

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रिमझिम-रिमझिम गीत सुनाता
देखो फिर सावन आया है।

इतनी तपन लिए थी धरती
ज्यों सीता कि अग्नि-परीक्षा।
वसुधा का सारा जड़-चेतन
माँग रहा था जल की भिक्षा।
तुलसी-बिरवा आँगन का फिर
धीरे-धीरे हरियाया है।

देखो फिर सावन आया है।
बूँदें खेल रहीं बच्चों सी
छुआ-छुई का खेल निरन्तर।
निर्धन की अभिलाषाओं सा
चूने लगा फूस का छप्पर।
चंदा-सूरज दिखें नहीं अब
जाने किसने भरमाया है।
देखो फिर सावन आया है।

युवा-ह्रदय के भावी सपनों
जैसा बढ़ा नदी का पानी।
कजरारे घन मुझसे कहते-
मेघदूत-सी लिखो कहानी।
नयनों की नदिया में कोई
आँसू बनकर लहराया है।
देखो फिर सावन आया है।

पंख लगाये उड़ता बचपन
ऐसे हैं सावन के झूले।
पीव-पीव रट रहा पपीहा
वो प्रियतम को कैसे भूले।
परदेशी जाने कब आये
बिन देखे मन अकुलाया है।
देखो फिर सावन आया है।