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देर तक बिलसने से जब तुम्हारी / कालिदास
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तां कस्यांचिद भवनवलभौ सुप्तपारावतायां
नीत्वा रात्रिं चिरविलसिनात्खिन्नविद्युत्कलत्र:।
दृष्टे सूर्ये पुनरपि भवान्वाहयेदध्वशेषं
मन्दायन्ते न खलु सुहृदामभ्युपेतार्थकृत्या:।।
देर तक बिलसने से जब तुम्हारी बिजली
रूपी प्रियतमा थक जाए, तो तुम वह रात्रि
किसी महल की अटारी में जहाँ कबूतर
सोते हों बिताना। फिर सूर्योदय होने पर
शेष रहा मार्ग भी तय करना। मित्रों का
प्रयोजन पूरा करने के लिए जो किसी काम
को ओढ़ लेते हैं, वे फिर उसमें ढील नहीं
करते।