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देवी मैया के दरस कूँ / ब्रजभाषा

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

देवी मैया के दरस कूँ घर से निकरौ लाँगुरिया॥ टेक
माथे तिलक सिंदूर कौ रे टोपी पहरी लाल,
पीरे कुरता पै पड़ी रे गल फूलन की माल॥ देवी.
झण्डा सोहै हाथ में रे बाजत मुख से बैन,
काजर कटीली डार कै री खूब चलावत सैन॥ देवी.
मेंहदी रच रही हाथ में रे घड़ी कलाई सोह,
ठुमक 2 कै वो चलै री दिल कूँ लेवे मोह॥ देवी.
जोगिन ठाड़ी राह में रे भरि-भरि देखै नैन,
मन तिरपत हे गयौ हमारौ ऐसी उसकी कैन॥ देवी.