देश भारत की अनोखी शान है
हाँ हमें इस भूमि पर अभिमान है।।
स्वार्थ जननी में कभी होता नहीं
स्वार्थमय बनती सदा संतान है।।
प्राणपण से देश की रक्षा करें
बस यही तो वीर की पहचान है।।
व्यर्थ ही करने लगा अभिमान क्यों
जीव जग में चार दिन मेहमान है।।
जो स्वहित से अधिक परहित को कहे
बस उसी का तो सदा सम्मान है।।
देश की जयकार नित करते रहें
देह इसका ही दिया तो दान है।।
माँ पिता की जो न शुश्रूषा करे
सुख नहीं पाती कभी संतान है।।