Last modified on 21 जनवरी 2011, at 17:51

देह-दण्ड / केदारनाथ अग्रवाल

देह-दंड
मैं भोग रहा हूँ,
फिर भी,
अपने
पुष्ट प्राण से,
स्वागत करता हूँ-
कहता हूँ;
आएँ,
बैठें,
मुझे सुनाएँ-
नई-नई
अपनी
रचनाएँ,
मुझे रिझाएँ,
देह-दंड की
व्यथा मिटाएँ।

रचनाकाल: ०१-०४-१९९०