जीवन का अपने उत्कर्ष
उसने दिया सहर्ष
जैसे अर्पित करता पुष्प
सुगन्ध युक्त सौन्दर्य
मैंने जो छिपाया उससे
सदियों का था संचित स्वार्थ
और मेरा था ही क्या
रस्सी के बल के सिवाय
दे देना सब कुछ
जीवन है
लेना कुछ भी
मृत्यु वरण है
जीवन का अपने उत्कर्ष
उसने दिया सहर्ष
जैसे अर्पित करता पुष्प
सुगन्ध युक्त सौन्दर्य
मैंने जो छिपाया उससे
सदियों का था संचित स्वार्थ
और मेरा था ही क्या
रस्सी के बल के सिवाय
दे देना सब कुछ
जीवन है
लेना कुछ भी
मृत्यु वरण है