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दोखी कुण / राजू सारसर ‘राज’

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जुगां जूनैं
जूण रै संसकारां
हेत-प्रीत री
बै ई पोथ्यां बांची म्हैं
जकी संभळा’र गया
थे म्हानै
जांवता-जांवता।
थारला सा भाव
म्हारै पण क्यूं नीं बापरै
हिवडै़ मंे
बतांवता जी सा।
सबदां रा अरथ
बदळग्या लागै
अबै इणरो दोख
देऊं किणनैं !