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दोस्त बनाएँ / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
कंधे पर लादे एक बोरी
ढँढ रहे जो चोरी-चोरी
रद्दी कागज, टूटी बोतल,
चलो, उन्हें हम दोस्त बनाएँ।
अधनंगे हैं, धूल भरे हैं,
और पेट में भख भरे हैं,
लेकिन जिनके मन हैं कोमल,
चलो, उन्हें हम दोस्त बनाएँ।
सबकी होगी एक कहानी,
सुनें उन्हीं की आज जुबानी,
दुख-सुख बाँटे उनके दो पल,
चलो, उन्हें हम दोस्त बनाएँ।
चेहरे इनके पीले-पीले,
इससे पहले, ये शर्मीले
हो जाएँ आँखों से ओझल
चलो, उन्हें हम दोस्त बनाएँ।