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दोहराव / सजीव सारथी

चिथड़े से उड़ते हैं
हवाओं में,
जिस्म टुकड़ों में
रुंधे पड़े हैं,
लाशों की बू आ रही है,
फिज़ा के चेहरे पर
मुर्दनी तारी है,

फलक पर कहीं कोई तारा नहीं,
अंधेरी चादर छिदी पड़ी है,
और टपक रही है लहू की बूंदे,
धरती का दामन सुर्ख हुआ जाता है ,
फिर आदम ने खुल्द में,
किसी जुर्म को अंजाम दिया है,
इस बार,
खून खुदा का बहा है शायद -

सातवें अर्श पर।