दोहा / भाग 2 / महावीर उत्तरांचली
सिस्टम में हैं भेड़िये, श्वान बसे हर ओर
प्रहरी पूँजीवाद के, जितने काले चोर।11।
कुछ भी कहाँ विचित्र था, जनजीवन में मित्र
पाक-साफ़ थे जो यहाँ, उनका गिरा चरित्र।12।
मानवता को मारकर,कैसा मचा जिहाद
ख़ारिज की अल्लाह ने, बन्दे की फ़रियाद।13।
कट जाये सर ग़म नहीं, ज़िंदा रहे जमीर
वतन की आबरू रहे, कहे कवि महावीर।14।
हैं ख़्वाबों में रोटियाँ, सोये ख़ाली पेट
कुचल दिया धनहीन को, बढ़ते जाएँ रेट।15।
रोज़ दिखता मिडिया, उल्टी-सीधी बात
चंदा को सूरज कहें, कहें दिवस को रात।16।
कड़वी बातें भर रही, जन-मन में आक्रोश
मानवता को त्याग दें, भरे जिहादी जोश।17।
तेज़ाब फैंक क्या मिला, सूरत हुई ख़राब
तनिक क्षणिक आवेश में, टूटे कितने ख्वाब।18।
किसने समझी है यहाँ, मानव मन की पीर
तन से राजकुमार हैं, मन से सभी फ़क़ीर।19।
जम रही परत-दर-परत, हृदय पर मकड़ जाल
मन डूबा अज्ञान में, मचता रोज़ बवाल।20।