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दोहा / भाग 8 / दुलारे लाल भार्गव

राखत दूरी दूरि ही, सखि प्रेमिन कौ प्यार।
नित तिनके मन कुसुम में, बसति बसंत बहार।।71।।

तरुन तरुनई-तरु सरस, काटि न कलुस-कुठार।
सींचि सुजीवन सुमन धरि, करि निज सफल बहार।।72।।

दुष्ट दुसासन दलमल्यौ, भीम भीम तम-भेस।
पाल्यौ प्रन छाक्यो रकत, बाँधे कृस्ना केस।।73।।

पागल कौं सिच्छा कहा, कायर कौं करवार।
कहा अंध कौ आरसी, त्यागी कौं घर-बार।।74।।

सहज सनेह सुभाव मृदु, सहजोगिता सुकाम।
एई दंपति धाम की, दीवारें अभिराम।।75।।

बंसीधर अधरन धरी, बंसी बस कर लेति।
सुधि-वुधि सजनि भुलाइकें, जोति इकै कर देति।।76।।

खरी साँकरी हित-गली, बिरह-काँकरी छाइ।
अगम करी तापै अली, लाज-करी बिठराइ।।77।।

केहि कारन कसकन लगी, भले मन चले लाल।
आँख किराकिरी होइ यह, आँख-पूतरी बाल।।78।।

सोवत कन्त इकन्त चहुँ चितै रही मुख चाहि।
पै कपोल पै ललक लखि, भजी लाज अवगाहि।।79।।

बार <ref>दिन</ref> बित्यै लखि बार <ref>द्वार</ref> झुकि, बार <ref>बाला</ref> बिरह के बार <ref>बोझा</ref>।
बार <ref>फिर-फिर</ref> बार सोचति-कितै, किन्हीं बार <ref>देर</ref> लबार <ref>गयी</ref>।।80।।

शब्दार्थ
<references/>