भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहे-3 / उपमा शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

21.
कदमों को लूँ चूम मैं, अधरन बनूँ सुहास।
बिछूँ तुम्हारी राह यूँ, बिछे ज्यों अमलतास।

22.
बातों से तेरी मिले, शीत-पवन अहसास।
हँस दे तो ऐसा लगे, फूल झरे हों पास।

23.
आकर देखो ये करें, कितना रोज़ निहाल।
मुझसे क्यों रुकते नहीं, तेरे कभी ख़याल।

24.
हाथ छुड़ा के जब गया, वह मेरा चितचोर।
नयन कुंज के नीर में, फिर यादों का शोर।

25.
नहीं खिसकते क्यों कभी, यादों भरे पहाड़।
आती तेरी आहटें, की वह बंद किवाड़।

26.
तुमसे मेरा मन जुड़ा, तुम ही अब संसार।
बाँटो तुम सुख-दुख सदा, बाँटे ज्यों परिवार।

27.
स्वाति के बिन पपीहरा, लेता आँखें मूँद।
प्यासा कितना भी रहे, पिये न जल की बूँद।

28.
कहीं रहूँ, भूलूँ नहीं, हूँ उदास या शाद।
आती हर पल क्यों मुझे, बस तेरी ही याद।

29.
निश्छलता जिसमें मिले, उस दिल की है आस।
जिससे मन मैं खोल दूँ, करूँ सहज विश्वास।

30.
अपने दिल पर ध्यान दो, हर पल आठों याम।
रखना बहुत सहेज कर, मेरा है यह धाम।