Last modified on 1 सितम्बर 2025, at 17:08

दो कवि-मित्रों की याद / नरेन्द्र जैन

मेरे मोबाइल में चन्द्रकान्त देवताले का नम्बर है
उनकी विदाई के बाद
एक दिन मैंने उन्हें फ़ोन लगाया
उन्होंने कहा —
अरे नरेन्द्र जैन मैं जहाँ हूॅं
वहाँ कोई नेटवर्क नहीं आता
तो तुमसे क्या बात हो सकती है
यूॅं मुझे अफ़सोस है कि
मैं तुम्हें ऐसे शहर, ऐसे मोहल्ले
और ऐसी दुनिया में अकेला छोड़ कर आया हूॅं
जहाँ तुम्हारी गुज़र-बसर कैसे होगी
अलविदा, तुम्हारा चन्द्रकान्त देवताले

बाद में मैंने मंगलेश डबराल से भी
बात करने की कोशिश की
उसने कहा कि मैं अपना मोबाइल दिल्ली में भूल आया हूॅं
किताबों के बीच तुम्हारी घण्टी बज रही होगी
आप जिस व्यक्ति से बात करना चाहते हैं
वह दूसरे कॉल पर व्यस्त है
कृपया 10 मिनट बाद फ़ोन करें
यह वक़्त शाम का है
और शाम के वक़्त मंगलेश डबराल
अपने बन्दोबस्त में लगे ही रहते हैं

रचनाकाल : अगस्त 2025