दो दिन खेल गँवाया बचपन
रातों में काटी तरुणाई
लिखी आँसुओं ने जो पाती
वह मुस्कानों तक पहुँचाई।
मैं दुर्बलताओं का बन्दी
पर मेरी हिम्मत तो देखो,
गीतोंका परिधान पहनकर
सूली ऊपर सेज सजाई।
दो दिन खेल गँवाया बचपन
रातों में काटी तरुणाई
लिखी आँसुओं ने जो पाती
वह मुस्कानों तक पहुँचाई।
मैं दुर्बलताओं का बन्दी
पर मेरी हिम्मत तो देखो,
गीतोंका परिधान पहनकर
सूली ऊपर सेज सजाई।