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दो शे'र / अख़्तर अंसारी

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1.
मेरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर
ज़माना अपने लिए होशियार कैसा है.

2.
याद-ए-माज़ी अज़ाब है या रब
छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा