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द्वन्द्व के ज्वार बदले नहीं / जहीर कुरैशी

द्वन्द्व के ज्वार बदले नहीं
मन के संसार बदले नहीं

घिर गई फिर घुमड़ कर घटा
दु:ख की बौछार बदले नहीं

सारी दुनिया बदलती रही
सत्य के सार बदले नहीं

मिल गए जिनसे अपने विचार
हमने वे यार बदले नहीं

अनवरत साथ देगी कला
यदि कलाकार बदले नहीं

मरते दम तक भी इंसान के
कुछ सरोकार बदले नहीं

खारे सागर की ही तर्ज़ पर
नभ के विस्तार बदले नहीं