कर्त्ताराम क्रिया करी, धरनीश्वर भां सोय।
जेहि गुरु पुरा नहि मिलो, तोहि दर्शैगो दोय॥1॥
धरनी जबते लखि परी, धरणीश्वरकी मूर्ति।
सोवत जागी आत्मा, लागि तबहिँते सुर्ति॥2॥
धरनी धर में अघर है, धरनीश्वर जेहि नाम।
अविनाशी विनशै नही, सन्त-सुधारन काम॥3॥
दन्त-कथा दुनिया कहै, सन्त करै विलछानि।
धरनी धोखा सब मिटो, धरनीश्वर को जानि॥4॥
कायिक वाचिक मानसिक, दूजो धरों न ध्यान।
धरणीश्वर के नामपर, धरनी जन कुर्बान॥5॥
धरनीश्वर दाता बड़ो, धरनी बड़ो भिखारि।
पायो भिक्षा भक्ति की, नहिँ निघटै युग चारि॥6॥
धरनी करनी नहिँ करी, नहिँ कछु करी उपाय।
धरनीश्वर दाया कियो, आपु लियो अपनाय॥7॥
धरनीश्वर मिले दिन 2 बाढै नेह।
जाननिहोरे जानि हैं, अकथ कहानी येह॥8॥
दया विराजी साधुकी, राजी सब संसार।
धरनीश्वर-सिश्वासते, धरनी भव-जल-पार॥9॥
धरनीश्वर उर जिन धरो, धनि तिनको अवतार।
धरनी करत प्रदक्षिण, प्रणमत वारंवार॥10॥
धरनीश्वर दाया करी, धरनी धरी प्रतीति।
संगति पकरी साधुकी, दियो नगारा जीति॥1॥
धरनीश्वर अदिहीहंते जब नहिं धरनि-अकाल।
प्रगट भये धरनीश्वरी, जबते धरनीदास॥12॥