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धरा तरबूज दो फाँक / डॉ. सत्यनारायण सोनी

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'अर्थ' को गोल-गोल घुमाते हुए

बिटिया को याद आई अचानक

माखनलाल चतुर्वेदी की काव्य-पंक्तियां-

'मसल कर अपने इरादों-सी उठाकर

दो हथेली हैं कि पृथ्वी गोल कर दे?' और उसने जाहिर कर दी

पूरी कविता सुनने की जिज्ञासा।

तब मैंने सुनाई मात्र यह पंक्ति उसे-

'धरा? यह तरबूज है दो फाँक कर दे।'

सुनकर मुस्कुराई वह

और माऊस को हल्का-सा टर्न देकर

एक बार और जोर से घुमाया

और छोड़ दिया

देर तक घूमने के लिए 'धरा' को।

सोचा,

इस तरह भी याद आती हैं कविताएं!

2010