भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धान की खेती / देवानंद शिवराज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धान की खेती अति सुक देती
किसानों का मन मोह लेती
कीचड़ पानी में नित मेहनत करते
नहीं सरदी गरमी से डरते,
गोदामों को अनाजों से भरते
न किसी की आस पे मरते
जहाँ भी देखो हरी पीली जमीं
किसानों में न कोई कमी
खेती जीवन में हरी भरी निराली
देश को ऊँचा उठाने वाली।