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धुँआ (30) / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
क्या धुएँ के साए में
कभी कोई फूल खिला है
यदि नहीं, तो आतंकवाद रूपी धुएँ
के साये में कोई धर्म पल सकता है
यह एक प्रश्न है, जो विचारणीय है ।
यदि नहीं तो मानव समझ ले
क्या आवश्यकता थी
भगवान को मानव बनाने की
वह मानव को जानवरों की तरह
दिल और आत्मा देकर रह जाता ।
हां, यदि मानव को भगवान ने
दिमाग रूपी हीरे से सजाया है
तो क्यों न इसका मूल्यांकन करें
और इस आतंकवादी धुएँ से
मानवता रूपी कोहिनूर को
काला पड़ने से बचा लें ।