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धूप थी और बादल छाया था / नासिर काज़मी
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धूप थी और बादल छाया था
देर के बाद तुझे देखा था
मैं इस जानिब तू उस जानिब
बीच में पत्थर का दरिया था
एक पेड़ के हाथ थे खाली
इक टहनी पर दिया जला था
देख के दो चलते सायों को
मैं तो अचानक सहम गया था
एक के दोनों पांव थे गायब
एक का पूरा हाथ कटा था
एक के उलटे पैर थे लेकिन
वो तेज़ी से भाग रहा था
उनसे उलझ कर भी क्या लेता
तीन थे वो और मैं तन्हा था।