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न'व वसंतक लेल / अग्निपुष्प

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भाइ, अहाँ आइ धरि
गामक सिमान टपि जेबाक
एकटा व्यर्थ चेष्टा करैत रहलहुँ
महानगरक मोह मे
नचैत मशीन मे
ट्रामक भीड़ मे
काली मंदिर सँ कॉफी हाउस धरिक
कोलाहल में आ
एकटा इंद्रधनुषी साँझ मे
अपना केँ तकैत रहलहुँ

च' र सँ घर घुमैत
हेंजक हेंज चोंच खोलने चिड़इ
चुनमुन्नी केँ बिसरैत रहलहुँ

अहाँ नदीक दूटा कछेड़ सन
दूटा परस्पर विरोधी वर्गक बीच
एकटा पुल बनल रहब
मुदा अपन हेरायल बाट नहि ताकि सकब
अहाँ ओत' एकटा भुखायल भीड़क
चिचियाइत स्वर भ' सकै छी
अहाँक स्वर सदिखन
दबाइत रहत बूटक स्वर मे
धुआँइत रहत टियर गैस मे
राजमार्गक दुधिया इजोत मे
अहाँ बिसरि गेलहुँ
गामक बीच बाट पर चतरल
एकटा गाछ
बाड़ी में अनेरुआ जनमल
मिरचैयाक झाड़
अपन आड़ि पर ससरैत शंखडोका
तिजोड़ी में बन्न होइत औंठा निशान

अहाँ बिसरि गेलहुँ
पोखरिक दाउर भ' गेल लोक
कुहेस में डूबल सौंसे गाम
आबा जकाँ धधकैत गामक सिमान

भाइ, फेर बेर घुमि आउ
अपन गामक सिमान मे
अपन टूटल मचान मे
गामक एहि आइनिक अंत लेल
एकटा न' व बसन्त लेल।