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नई गंध / दिनेश जुगरान
Kavita Kosh से
गिड़गिड़ाहट और छीना-छपटी की मिली-जुली मुद्राओं से भरी
तुम्हारे शरीर की भाषा करती है ऐलान
हथियाई हुई ताक़त का
हवाओं
हवाओं की गरमी में तुम्हारी ही साँसों की आग सुलगती है
हँसी है एक स्पष्ट चेतावनी कि
कोई और हँस नहीं सकता
बग़ीचे के फूल खिलते हैं सजने को तुम्हारे ही इर्द-गिर्द
वो तालाब पी चुका पास-पड़ोस की क्यारियों का पानी
जिसे तुमने सजाया है अपने घर के सामने
तुम चाहते हो चिड़ियों की पहली उड़ान
उन चुटकियों की आवाज़ से हो प्रारंभ
जिन्हें तुम अनायास ही बजा देते हो
तुम्हें शायद यह अंदाज़ा नहीं
हवाएँ व्याकुल हैं चिड़ियों का संगीत
अपने पंखों में समेट उड़ने को उस द्वीप की ओर
आ रही है जहाँ से नई गंध