नए साल क्या-क्या लाओगे ?
प्यारा-प्यारा नया कलैण्डर
ताज़ा दिन, ताज़ी-सी शाम,
चिड़ियाघर की सैर, और फिर
हल्ला-गुल्ला मार तमाम ।
हलुआ, पूड़ी, बरफ़ी, चमचम
से मुँह मीठा करवाओगे ?
मीठी-मीठी एक बाँसुरी
नई कहानी, नई क़िताब,
मीठी-मीठी अपने शामें
हँसता जैसे सुर्ख़ गुलाब ।
ख़ुशबू का एक झोंका बनकर
सबके मन को बहलाओगे ?
या बुखार पढ़ने का सब दिन
काग़ज़-पतर रँगवाओगे,
टीचर जी की डाँट-डपट
मम्मी की झिड़की बन जाओगे ।
खेलकूद के, शैतानी के
सारे करतब भुलवाओगे ?
झगड़ा-टण्टा रस्ता चलते
जाने कैसे-कैसे झंझट,
बिना बात की ऐंचातानी
बिना बात की सबसे खटपट ।
गया साल सच, बहुत बुरा था,
उसकी चोटें सहलाओगे ?