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नटखट बच्चा है सागर / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
जिदियाता है तो मान में नहीं आता
बार-बार उफनता है
खुश हो तो तट तक
दौड़ लगाकर
सब कुछ बटोर लाता है
कभी फेंक आता है
दिन भर खेलता है सूरज से
शाम को कट्टी कर
अनमना हो जाता है
फिर भूल-भालकर सब कुछ
खेलने लगता है चाँद से
बनाने नही देता किसी को घरौंदा
बिगाड़-बिगाड़ कर भाग जाता है
डरने वाले को डराता है आवाज बदलकर
प्रेम करने वालो का सखा बन जाता है
लिखने देता है तट पर एक-दूजे का नाम
फिर फेरकर सब पर पानी
शैतानी से हँसता है
यह सागर कोई नटखट बच्चा है.