भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नटखट भैया / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
टिंकू भैया नटखट जी
करते रहते खटपट जी।
ऐनक लेकर दादी जी का
टिका नाक पर चलते हैं
छड़ी चुराकर दादाजी की
ठक ठक ख़ूब टहलते हैं।
मेज-घड़ी की फिरा सुइयाँ
छुप जाते हैं झटपट जी।
तैरा देते हैं दीदी की
गुड़िया पानी के टब में
अखबारों की बना पतंगें
रोज उड़ाते हैं नभ में।
चीनी के डिब्बे में मिर्चें
उलट भागते सरपट जी।