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नटी: वधूटी / पयस्विनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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चंचल अंचल ओम्हर, एम्हर उर भरले तरल सिनेह
नगर - डगर मे सोर ओतय, सुर मंजु विपंची गेह
एक क छवि छापल जाइछ खबरिक कागज सत रंग
छपित छुफ्ति बेसुधि पुनि क्यौ गृह - कारज सीमित अंग
रजत - पट क शोभा छायामयि छलना क्यौ उतरोल
नील पट क घोघट ओटहि पुनि ललना, सुनी न बोल
सहस - सहस दृग - सागर चपल तरंगक झपन लैछ
दूरहु नयन क कोनहु कोन निरखि उर कम्पन ह्वैछ
हुनक विकच कचनार वयस रस-कानन जन अलि पुंज
हिनक सुरभि मंजरि तुलसिक पूजित निज आङन-कुंज
वन - वन कुसुम कुसुम मधु उन्मद मधुकरीक झंकार
आमक आङन पिकी वसंत - वधूक स्वरक सत्कार
रती काम - वामा उद्दामा जत तत मुक्ता मोल
सती अनामा पति - सतभामा सचित निधिक अमोल
राजनीति मत कूट कपट उत अह - निस अस्त - व्यस्त
शूद्ध संस्कृति क मणि क ज्योति नित उदित न इत पुनि अस्त
ओम्हर चचला चपला चमकय घ्ज्ञन घमड नभ छापि
दृग चौंकाय, खसाय वज्र, जग दैछ तिमिर पुनि चापि
एम्हर उदित जे निर्मल शीतल रेखा क्षितिजक छोर
करइछ हीतल शीतल जगती चन्द्रिकाक शुचि कोर
लहरि लेव सागरक खार जल उच्छल नीलम नीर
ज्वार - भाट उठ - बैठ कते घुस-पैठ सहब बसि तीर
अथवा गंगा - धार नहायब? शुचि रुचि उषा प्रभात
बिन्दु - बिन्दु आचमन तृषित चित स्नातक! पुलकित गात