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नदियों की स्मृति / उपेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
स्मृतियाँ भी
होती हैं
नदियाँ
जब तब
जिन में डुबकी लगाना
सार्थक है
नदी-स्नान या
पीपल पर चल चढ़ाने-सा
विस्मृत होता जा रहा है
एक / आम रिवाज
मांगलिक अवसरों पर
नदियों को निमंत्रित करने का
बड़े भाई के विवाह का
निमन्त्रण-पत्र मैं स्वयं
देकर आया था गंगा को
यह भूलना कुछ यूँ है कि
नदियों की बातें
अब हम पूछने लगे हैं
संस्कारों की बजाय
भूगोल से
जिसे यह तक नहीं मालूम कि
नदियों के वंशज हैं
आदमी और वृक्ष
आदिम पुरखिनें
हमारी ये नदियाँ
जानती हैं हमारी व्यथा को
जानती हैं वे
वृक्षों को
उनकी कथा को
परन्तु हम तो भूल कर सब
बदलते समय में
व्यस्त हैं नदियों के खिलाफ
रचने में षड्यंत्र
नदियों की स्मृति आज भी
चाहती है सुनहरी कांति बाली
छवियाँ
क्योंकि उन्हीं से
उपजी है पवित्रता